Friday, November 21, 2008

सर्दी आई है

सर्दी आई है
पहने तुम्हारी यादों की
वर्दी आई है
लेकिन अजीब इतफाक है
साथ अपने तुम्हारी बेरुखी लायी है
कितने आधे अधूरे सपने देखने की
ऋतु यह आई है
गुनाह जो कभी किया ही नही
सजा उसकी भुगतने की बारी
अब आई है
उस पर यह सितम कि मेरी
तो ख़ुद से भी बात नही हो पायी है
सब कुछ इतनी जल्दी सिमट गया
कि मुझे कुछ समझ ही न आई है
मैंने तो सोची ठी बहार
लेकिन यह ऋतु मेरे लिए सिर्फ़
पतझर लायी है

सर्दी में बहार की उम्मीद करने की
सजा मैंने पायी है
सर्दी की ऋतु आई है........
अनु

Wednesday, November 19, 2008

जानते हो

जानते हो
दिन चडने के साथ
सूरज भी ताकता है राह तुम्हारी
मेरे साथ साथ
लेकिन तुम हो कि आते ही नही
सूरज भी थक कर शाम को ढल
जाता है
शाम भी मेरी तरह
बुझी बुझी
करती है इंतजार तुम्हारा
लेकिन तुनहो कि आते ही नही
फ़िर तारे आ जाते हैं
मेरा साथ देने के लिए
और तुम्हारा इंतजार करने के लिए
लेकिन तुम फ़िर भी नही आते
चाँद भी मेरी उदासी देख कर
उदास हो जाता है और
अपना सफर तै करता है
लकिन तुम्हारी कोई ख़बर नही
बस कुछ ऐसे ही दिन और रात
कटते रहते हैं
लेकिन तुम आते ही नही!!!!!!!!!!!
अनु.

मुझे याद है

मुझे याद है हर आहात पर तुम्हारे
आने का अहसास होना
मुझे याद है तुम्हारी मुस्कराहट से
कमरे में रौशनी होना
मुझे याद है तुम्हारी हँसी में
मेरी ज़िन्दगी का होना
मुझे याद है तुम्हारी उदासी में
मेरा बेजान होना
मुझे याद है बातों में तुम्हारी
खुशी के गीत होना
मुझे याद है गुस्से में तुम्हारे
मेरे आंसुओं का सैलाब होना
मुझे याद है तुम्हारा सपर्श और
उस में मेरा समा जाना
मुझे याद है तुम्हारा उस दिन का जाना
और अब
मीलों के फासले होना !!!!!!!
मुझे याद है .......

अनु

Tuesday, November 18, 2008

इन्तजार

इन्तजार !!!! इंतज़ार !!!!!!!
सुबह में दोपहर का
दोपहर में शाम का
शाम में रात का
और रात में फ़िर से सुबह का है
इंतज़ार !!!
झूद है सब बहाने हैं सब
जो तुम्हारी उम्मीद में
दिल ने बनाने हैं अब !!!!!!!!!!

अनु

नही गवारा मुझे

तुम्हारा यू ही हर किसी से मिलना मिलाना
नही गवारा मुझे
तुम्हारा यू ही हर किसी को अपना समझना
नही गवारा मुझे
तुम्हारा यू ही नए रिश्ते जोड़ना लोगों से
नही गवारा मुझे
तुम्हारा यू मुझ से बढ कर समझना
नही गवारा मुझे
तुम्हारा यू ही किसी गैर के लिए एक पल में
मुझे छोड़ कर जाना
नही गवारा मुझे.........

अनु
यह कैसी नज़्दिकिआं हैं
जो दुरिआं बनती जाती हैं
यह कैसी ख्वाहिशें हैं
जो मजबूरीआं बनती जाती हैं
उस पर आलम यह कि
मैं इन सब को झेला करती हूँ
इन सब से गुज़रा करती हूँ
आख़िर क्यो ?????

अनु

Sunday, November 16, 2008

रास्ते


सोये हैं रास्ते
महसूस होता है कि
मंजिल पाने कि उम्मीद में
थक हार कर बैठ गए हैं
थम गए हैं
रुक गए है
मुसाफिर तो इन पर चल कर
मंजिल पा लेते हैं
लेकिन रास्तों का क्या
जो सब दर्द अकेले सहते हैं
कितने लाचार हैं
न आंसू बहा सकते हैं
न अपना दर्द किसी से बाँट सकते हैं
शायद इसी लिए आज रास्ते
सोये हैं
महसूस होता है.........

अनु.

प्रयास

प्रयास

सुबह होती है
एक नए दिन की नई शुरुआत होती है
दिन भर की जदोजहद में ख़ुद को
जिंदा रखने की कोशिश करती हूँ
सामन्य होने का प्रयास करती हूँ
लकिन शाम होते ही वो प्रयास दम तोड़ देता है
रात के अंधियारे में जब तारों की छाओं होती है
चाँद की चाँदनी अपने होने का अहसास कराती है
तो अचानक से ही मेरी गालों पर पानी की बूँदें आ गिरती हैं
चाँद तो अपना सफर तय कर लेता है
कहने को तो वक्त भी गुज़र जाता है
बस इक मैं ही बीते दिन की कहानी बन कर रह जाती हूँ
फ़िर भी न तो धरकन बंद होती है न साँसे रूकती हैं ..................
सुबह होती है
एक नए दिन की नई शुरुआत होती है.......

अनु

Saturday, November 15, 2008

नींद

आज मैंने गौर किया तो पाया
के नींद कितनी उदास थी
और आखों से कितनी दूर
अपने ही गम में कहीं गुम थी
उस के आईने पर
सपनो का अक्स था
इस लिए मैंने उसे नहीं जगाया
बस हौले से सहलाया और
ख़ुद को बहुत बेचैन पाया
क्यों कि आज मैंने गौर किया तो पाया
कि .........
अनु।

Thursday, November 13, 2008

शाम

गर्मिओं की शाम में
मुझे सब याद है
आप को याद हो न हो
क्या पाया क्या खोया
आप को ख्याल हो न हो
मुझे सब एहसास है
न कोई कसमें खायी
न कोई वाडे किए
बस आधी रात के बाद
अपने अपने रास्ते चल दिए
बहुत ही मधुर यादें साथ लिए
हम आप से अलग हुए
आप को एहसास हो न हो
गर्मिओं की शाम में
मुझे सब याद है
आप को याद हो हो

अनु

तुम्हारी अनुपस्थति में




वही रास्ते हैं
लकिन कुछ लंबे हो गए हैं
तुम्हारी अनुप्स्थति में .
वही मंजिलें हैं
लेकिन कुछ दूर हो गई हैं
तुम्हारी अनुप्स्थति में .
वही पौधे हैं
लेकिन अब पेड बन गए हैं
तुम्हारी अनुप्स्थति में .
वही नज़रें हैं
लकिन नजारे बदल गए हैं
तुम्हारी अनुप्स्थति में .
वाही रातें हैं
लेकिन सपने खो गए हैं
तुम्हारी अनुपस्थति में।
वाही मैं हूँ
लकिन मेरे होने के मायने बदल गए हैं
तुम्हारी अनुप्स्थति में .

अनु

Wednesday, November 12, 2008

सपने


तन्हाईओं में अपने हैं जो
कुछ टूटे कुछ बिखरे हैं वो
तेरी मेरी आखों के सपने हैं जो
कुछ गैर तो कुछ अपने हैं वो
रातों को साथ साथ चलते हैं जो
यादों के छोट्टे छोटे साए हैं वो
मेरे साथ तेरे साथ चल के आए हैं जो
तन्हाईओं में अपने हैं जो
कुछ टूटे तो कुछ बिखरे हैं वो......

अनु।

Saturday, November 8, 2008

याद है

कुछ साल पहले
मैं और तुम
हाथ में डाले हाथ
सड़क पर गिनती गिनते गिनते
चलते थे
पहले सुबह में और फ़िर दोपहर में
बिना मतलब चला करते थे
और गिनती गिना करते थे
गिनती शुरू होती थी हमेशा दो से
मैं दो बोलती तुम तीन
मैं तीन बोलती तुम चार
ऐसा ही क्रम चलता रहता था
जब क्रम टूटता तो हम कहते एक वार और।
लकिन आज मैं उन्ही सड़कों पर अकेली चलती हूँ
खाली हाथ बस तुम्हरी यादों के साथ
मैं दो बोलती हूँ तो तीन की आवाज़ दिल से ही आ जाती है
तुम शायद तेज़ चलने की आदत से मजबूर हो
और मैं एक जगह ठहराव चाहती हूँ
इसी लिए मैं आज अकेली उन्ही सडकों पर अकेली चलती हूँ
इसी उम्मीद में की शायद तुम कहीं से आ जाओ
और गिनती क क्रम को आगे बढाओ.....
कुछ साल पहले.......
अनु.

Monday, November 3, 2008

अच्छा हो


कुछ बातें रह जाएँ अनकही
तो अच्छा हो !
कुछ राज़ राज़ ही रह जाएँ
तो अच्छा हो !
कुछ बात ना हो फ़िर भी सब कह दिया जाए
तो अच्छा हो !
तुम्हारा साथ बस मेरा ही बन कर रह जाए
तो अच्छा हो !
दिल का दर्द अगर दिल में ही रह जाए
तो अच्छा हो !!!!!!!!!!
अनु