Tuesday, December 9, 2008

इच्छा


तुम आसमान हो
और
मैं तुम्हें पाने की
इच्छा रखती हूँ ।
मैं तुम्हें भी पाना चाहती हूँ
और अपने पाँव के नीचे की
धरती भी नही छोड़ना चाहती हूँ ।
तुम अपनी ऊंचाई से मजबूर
और मैं अपनी लाचारी से लाचार
तुम्हें मन की आंखों से निहारा करती हूँ
ज़िन्दगी से रोज़ न जाने कितने
समझौते करती हूँ
ख़ुद को किसी तरह जिंदा रखने की
नाकाम कोशिश करती हूँ
जिंदा रहना एक मजबूरी है
और ज़िन्दगी जीना एक सुखद
एहसास हैं
मैं तो बस मजबूरी से गुजरती हूँ ।
तुम आसमान हो
और
मैं तुम्हें......
अनु