TUM
Tuesday, November 18, 2008
यह कैसी नज़्दिकिआं हैं
जो दुरिआं बनती जाती हैं
यह कैसी ख्वाहिशें हैं
जो मजबूरीआं बनती जाती हैं
उस पर आलम यह कि
मैं इन सब को झेला करती हूँ
इन सब से गुज़रा करती हूँ
आख़िर क्यो ?????
अनु
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