तुम चलते मैं चलती
हम चलते
साथ चलते जज़्बात
तो फिर क्या होती बात !
तुम रहते मेरे साथ
चाहे वो होती पूर्णिमा की रात
या फिर अमावस्या का अन्धकार
बस
तुम चलते मैं चलती
हम चलते
साथ चलते जज़्बात
तो फिर क्या होती बात !!
काश ऐसा होता
गाँव कि कोई गली होती
या होता कोई शहर
या फिर होता गंगा का किनारा
चाहे होता कोई गुरुद्वारा
या होता फिर ठाकुर जी का द्वारा
बस
तुम चलते मैं चलती
हम चलते
साथ चलते जज़्बात
तो फिर क्या होती बात !!!
तुम तो हो मेरी मंजिल
काश तुम्हारी मंजिल का रास्ता भी
मुझ तक ही होता
तो क्या होती बात ....
तो क्या होती बात..
तुम चलते मैं चलती
हम चलते
साथ चलते जज़्बात
तो फिर क्या होई बात !!!!
अनु .