Friday, November 21, 2008

सर्दी आई है

सर्दी आई है
पहने तुम्हारी यादों की
वर्दी आई है
लेकिन अजीब इतफाक है
साथ अपने तुम्हारी बेरुखी लायी है
कितने आधे अधूरे सपने देखने की
ऋतु यह आई है
गुनाह जो कभी किया ही नही
सजा उसकी भुगतने की बारी
अब आई है
उस पर यह सितम कि मेरी
तो ख़ुद से भी बात नही हो पायी है
सब कुछ इतनी जल्दी सिमट गया
कि मुझे कुछ समझ ही न आई है
मैंने तो सोची ठी बहार
लेकिन यह ऋतु मेरे लिए सिर्फ़
पतझर लायी है

सर्दी में बहार की उम्मीद करने की
सजा मैंने पायी है
सर्दी की ऋतु आई है........
अनु

1 comment:

makrand said...

good compostion
keep on writing
regards
kindly remove this verification
it strucks the flow to comment