
सोये हैं रास्ते
महसूस होता है कि
मंजिल पाने कि उम्मीद में
थक हार कर बैठ गए हैं
थम गए हैं
रुक गए है
मुसाफिर तो इन पर चल कर
मंजिल पा लेते हैं
लेकिन रास्तों का क्या
जो सब दर्द अकेले सहते हैं
कितने लाचार हैं
न आंसू बहा सकते हैं
न अपना दर्द किसी से बाँट सकते हैं
शायद इसी लिए आज रास्ते
सोये हैं
महसूस होता है.........
अनु.