Monday, October 20, 2008


जब उदासी से घिर जाती हूँ
तो मन होता है
किसी का साथ पाने को
जिस के कांधे पर सर रख कर
अपने आंसुओं की
बूँदें बहा सकूं !
दिल करता है
अपने मन के अंदर की सारी परतें खोलने को
अपने सारे गम पलकों पे सजाने को
सब कुछ तो कर लूँ
पर मैं वो साथ कहाँ से लाऊं
जो मेरे लिए हो
जो भी मिला वो किसी और का साथी है
उस का सानिध्य किसी और के लिए है
फ़िर भी ऐसे में
जब भी उदासी से घिर जाती हूँ........
अनु