Sunday, March 5, 2023

क्या सोचूँ

 क्या सोचूँ                                         

क्या सोचूँ 
क्या कहूँ 

क्या लिखूँ 

ए ज़िंदगी 

तुझे कैसे संभोदित करूँ?

सफ़र कहूँ 

जिस की दूर हैं मंज़िलें 

लम्बे हैं रास्ते 

या 

पहेली कहूँ 

जिसे सुलझाना है दूसरों के वास्ते 

या 

खेल कहूँ 

जिस के अपने नियम है और 

अपने है क़ायदे 

या 

प्रेम कहूँ 

जो अधूरा है 

जो जीने के बदलदे मायने 

या 

तोहफ़ा कहूँ 

जो ख़ास होने का एहसास दे

या 

संघर्ष कहूँ 

जिस का कोई अंत नहीं 

ए ज़िंदगी……..

 

अनु

Tuesday, January 17, 2023

हम अतरंगी दोस्त

 हम अतरंगी दोस्त 

विद्वान भी हैं और नादान भी

हम साथ भी हैं और दूर भी

इक दूसरे के लिए हैं मूल्यवान भी।

हक़ीक़त भी हैं और ख़्याल भी

बंधन भी है लेकिन प्रेम का।

आज़ादी भी है

हँसने कीरोने कीगाने कीकुछ भी करने की।

अपनी बेवक़ूफ़ियाँ भी बड़ी शान से लेते हैं हम

और प्रवचन भी तो खूब देते हैं हम।

एक दूसरे पर गर्व भी करते हैं।

ऊँचाइयों के पार जाने के सपने भी साथ साथ देखते हैं

हम

थोड़ा ज़्यादा ही attitude रखते हैं।

आख़िर क्यू ना रखेंबहुत मेहनत से कमाया है जनाब।

 

ज़िंदगी को ढोना नहीं जीना जानते हैं  

हम हर हाल में मुस्कुराना जानते हैं।

कुछ तो बात है हम में

पूर्णिमा के चाँद भी हैं  और अमावस्या की रात भी।

चाँद की चाँदनी से शीतल भी हैं

और सूर्य की रोशन से तेजस्वी भी हैं

हम अतरंगी दोस्त।



अनु जुल्का