Saturday, November 8, 2008

याद है

कुछ साल पहले
मैं और तुम
हाथ में डाले हाथ
सड़क पर गिनती गिनते गिनते
चलते थे
पहले सुबह में और फ़िर दोपहर में
बिना मतलब चला करते थे
और गिनती गिना करते थे
गिनती शुरू होती थी हमेशा दो से
मैं दो बोलती तुम तीन
मैं तीन बोलती तुम चार
ऐसा ही क्रम चलता रहता था
जब क्रम टूटता तो हम कहते एक वार और।
लकिन आज मैं उन्ही सड़कों पर अकेली चलती हूँ
खाली हाथ बस तुम्हरी यादों के साथ
मैं दो बोलती हूँ तो तीन की आवाज़ दिल से ही आ जाती है
तुम शायद तेज़ चलने की आदत से मजबूर हो
और मैं एक जगह ठहराव चाहती हूँ
इसी लिए मैं आज अकेली उन्ही सडकों पर अकेली चलती हूँ
इसी उम्मीद में की शायद तुम कहीं से आ जाओ
और गिनती क क्रम को आगे बढाओ.....
कुछ साल पहले.......
अनु.