Sunday, October 19, 2008

यादो के फूल बिखरे बिखरे से हैं
खयलो के डोरे उल्झे उल्झे से हैं
कुछ लफ्ज जो लिखे
गुम गुम से हैं
रास्ते जिन पेर हम साथ चले
सुन सान से हैं
फूल पत्ते और पेङ
सब बेजान से हैं
तुम्हारे मेरे साथ नही होने से
परेशान से है
यादो के फूल ...........
अनु

कैसे

शब्दों पर हक कैसे जताए
जो कहना है कैसे कहते जाए
मन जब थक जाता है तो
शब्द भी बुझ से जाते हैं
बिना कहे इतना सुन लेते हैं
मौन रह कर भी सब की नज़र में आ जाते हैं
अपनापन आज की दुनिया में कहाँ पाते हैं
ऐसे में शब्दों पर हक कैसे जताए ......

अनु.

लम्हा लम्हा

याद तुम्हारी आए
लम्हा लम्हा
आकर बहुत सताए
लम्हा लम्हा
प्यार तुम्हारा रुलाये
लम्हा लम्हा
दर्द बरता ही जाए
लम्हा लम्हा
जानते हो तुम बिन
जान निकलती जाए
लम्हा लम्हा
आसुओं का सैलाब उमर्ता जाए
लम्हा लम्हा
दिल दर्द में डूबता जाए
लम्हा लम्हा

अनु

मैं तुम्हें याद करती हूँ

जब सूरज उगता है
स्वरण सी धुप छाती है
जब सूरज ढलता है
चंडी सी चाँदनी बिखरती है
मैं तुम्हें याद करती हूँ
जब समय चलता है
लम्हे भागते है
दिन रंग बदलता है
मैं तुम्हें याद करती हूँ
उन अनजाने पलों को
तुम्हरी बोलती आखों को
मुस्कुराते चेहरे को
तुमाहरी आवाज़ को
तुमाहरे साथ को
मैं याद करती हूँ
तुमहरा आखें बंद क्र क जागना
मुझे पास न पा कर रोना
हमेशा हर पल मैं तुम्हें याद करती हूँ
अनु

क्यू है ?

इतनी लाचारी इतनी बेबस्सी क्यो है
ज़िन्दगी तुम बिन मुश्किल क्यो है
मेरी हर उम्मीद तुम्ही से जुड़ी क्यो है
मेरे दिल की धरकन में साँसे तुम्हरी क्यो है
तुम्हरी खुशबु मेरे रोम रोम में बसी क्यो है
जुदाई तुम्हरी मुस्जे रुलाती क्यो है
यादें तुम्हारी मुझे सताती क्यो है
दिल मेरा तुम बिन इतना बेचैन क्यो है
तुम बिन आख़िर इतनी घुटन क्यो है

अनु

तुम

मेरे सवाल भी तुम से हैं
मेरे जवाब भी तुम से हैं
मेरी ज़िन्दगी भी तुम से है
मेरी साँसे भी तुम से हैं
मेरा लगाव भी तुम से है
मेरी जुदाई भी तुम से है
बात तो बस इतनी सी है कि
मेरा अस्तित्व ही तुम से है


अनु