Sunday, August 15, 2010

zindagi

बिखरते ख्वाब देखे,
सिसकते जज़्बात देखे,
रूठती हुई खुशियाँ देखी,
रिश्तों कि उलझन देखी,
अपनों कि बेरुखी देखी ,
अकामियिओं के मंज़र देखे,
ना उमीदी के समंदर देखे,
एक ज़िन्दगी ने
हज़ारों ख्वाहिशों को मरते देखा
प्यार को नफ़रत में बदलते देखा,
अपने अस्तित्व की ज़दोज़हत को देखा
जब भी चाहा अपने हिस्से का आसमान तोह
अपने इर्द गिर्द सिमटते दायरों को देखा,
एक ज़िन्दगी ने ........

अनु