सर्दी आई है
पहने तुम्हारी यादों की
वर्दी आई है
लेकिन अजीब इतफाक है
साथ अपने तुम्हारी बेरुखी लायी है
कितने आधे अधूरे सपने देखने की
ऋतु यह आई है
गुनाह जो कभी किया ही नही
सजा उसकी भुगतने की बारी
अब आई है
उस पर यह सितम कि मेरी
तो ख़ुद से भी बात नही हो पायी है
सब कुछ इतनी जल्दी सिमट गया
कि मुझे कुछ समझ ही न आई है
मैंने तो सोची ठी बहार
लेकिन यह ऋतु मेरे लिए सिर्फ़
पतझर लायी है
सर्दी में बहार की उम्मीद करने की
सजा मैंने पायी है
सर्दी की ऋतु आई है........
अनु