यहाँ तुम वहाँ तुम
इधर तुम उधर तुम
जहाँ देखूं बस तुम ही तुम
गलियिओं में तुम
सडकों पर तुम
रास्तों में तुम
मेरी सोच में तुम
मेरी विचार में तुम
मेरी हर साँस में तुम
जहाँ भी जाती हूँ
मुझ से पहले
पहुच जाते हो तुम
फ़िर भी न जाने कहाँ
गुम् जाते हो तुम
मेरी उदासियिओं में तुम
मेरी खामोशियिओं में तुम
मेरी परेशानियिओं में tum
मेरी खुशियिओं में तुम
मेरा जूनून हो तुम
मेरी ज़िन्दगी हो तुम।
अनु।
2 comments:
सुन्दर ब्लॉग...सुन्दर रचना...बधाई !!
-----------------------------------
60 वें गणतंत्र दिवस के पावन-पर्व पर आपको ढेरों शुभकामनायें !! ''शब्द-शिखर'' पर ''लोक चेतना में स्वाधीनता की लय" के माध्यम से इसे महसूस करें और अपनी राय दें !!!
तुम और सिर्फ़ तुम....
बहुत ही अच्छा सोचा है पर एक बात कहना चाहुंगा कि अगर तुम को लेकर आपसी या बोद्धिक बहस होती तो तुम पर एक अलग ही मज़ा होता पड़ने का । पर एसा नही है कि इसमे कोई कमी है इसमे एक तमन्ना दिखी मुझे ... बहुत अच्छे.
Post a Comment