Sunday, January 25, 2009

तुम

यहाँ तुम वहाँ तुम
इधर तुम उधर तुम
जहाँ देखूं बस तुम ही तुम
गलियिओं में तुम
सडकों पर तुम
रास्तों में तुम
मेरी सोच में तुम
मेरी विचार में तुम
मेरी हर साँस में तुम
जहाँ भी जाती हूँ
मुझ से पहले
पहुच जाते हो तुम
फ़िर भी न जाने कहाँ
गुम् जाते हो तुम
मेरी उदासियिओं में तुम
मेरी खामोशियिओं में तुम
मेरी परेशानियिओं में tum
मेरी खुशियिओं में तुम
मेरा जूनून हो तुम
मेरी ज़िन्दगी हो तुम।
अनु।

2 comments:

Akanksha Yadav said...

सुन्दर ब्लॉग...सुन्दर रचना...बधाई !!
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60 वें गणतंत्र दिवस के पावन-पर्व पर आपको ढेरों शुभकामनायें !! ''शब्द-शिखर'' पर ''लोक चेतना में स्वाधीनता की लय" के माध्यम से इसे महसूस करें और अपनी राय दें !!!

मस्तानों का महक़मा said...

तुम और सिर्फ़ तुम....
बहुत ही अच्छा सोचा है पर एक बात कहना चाहुंगा कि अगर तुम को लेकर आपसी या बोद्धिक बहस होती तो तुम पर एक अलग ही मज़ा होता पड़ने का । पर एसा नही है कि इसमे कोई कमी है इसमे एक तमन्ना दिखी मुझे ... बहुत अच्छे.