Tuesday, January 27, 2009
कोशिश करना
मेरे अन्दर जो उठ रहा है तूफ़ान कभी उस से झूझने की कोशिश करना
मेरे दिल पर पडा है जो बोझ कभी उसे हल्का करने की कोशिश करना
मेरी ज़िन्दगी में जो खालीपन है कभी उसे भरने की कोशिश करना
मेरे अंदर की बेचैनियिओं को कभी महसूस करने की कोशिश करना
मेरी चाहतों का असर क्यों हो रहा कम कभी जानने की कोशिश करना
मेरे आँगन अब धुप क्यों निकलती है कम कभी छाओं में साथ देने की कोशिश करना
मेरे पैर अब क्यों जलने लगे है घास पर भी कभी हमसफर बनने की कोशिश करना
अनु
Sunday, January 25, 2009
किरदार
तुम
यहाँ तुम वहाँ तुम
इधर तुम उधर तुम
जहाँ देखूं बस तुम ही तुम
गलियिओं में तुम
सडकों पर तुम
रास्तों में तुम
मेरी सोच में तुम
मेरी विचार में तुम
मेरी हर साँस में तुम
जहाँ भी जाती हूँ
मुझ से पहले
पहुच जाते हो तुम
फ़िर भी न जाने कहाँ
गुम् जाते हो तुम
मेरी उदासियिओं में तुम
मेरी खामोशियिओं में तुम
मेरी परेशानियिओं में tum
मेरी खुशियिओं में तुम
मेरा जूनून हो तुम
मेरी ज़िन्दगी हो तुम।
अनु।
इधर तुम उधर तुम
जहाँ देखूं बस तुम ही तुम
गलियिओं में तुम
सडकों पर तुम
रास्तों में तुम
मेरी सोच में तुम
मेरी विचार में तुम
मेरी हर साँस में तुम
जहाँ भी जाती हूँ
मुझ से पहले
पहुच जाते हो तुम
फ़िर भी न जाने कहाँ
गुम् जाते हो तुम
मेरी उदासियिओं में तुम
मेरी खामोशियिओं में तुम
मेरी परेशानियिओं में tum
मेरी खुशियिओं में तुम
मेरा जूनून हो तुम
मेरी ज़िन्दगी हो तुम।
अनु।
Friday, January 9, 2009
यू ही
यू ही बिन मतलब
सड़कों पर चलना
कितना मुश्किल लगता है
न कोई मंजिल न कोई ठिकाना
नही मालूम होता जब कहाँ है जाना
तो बिन मतलब
बन वजह सड़कों पर यू ही चलना
कितना मुश्किल लगता है
न रास्ता ख़तम होता है न
न ही कोई हमसफ़र साथ होता है
बस अकेले ही चलते जाना होता है
दिशा हीन होना कितना व्यर्थ लगता है
तब जब यू ही बिन मतलब न जाने किस तलाश में
मन भटकता होता है
यू ही सड़कों पर चलना.....
अनु
सड़कों पर चलना
कितना मुश्किल लगता है
न कोई मंजिल न कोई ठिकाना
नही मालूम होता जब कहाँ है जाना
तो बिन मतलब
बन वजह सड़कों पर यू ही चलना
कितना मुश्किल लगता है
न रास्ता ख़तम होता है न
न ही कोई हमसफ़र साथ होता है
बस अकेले ही चलते जाना होता है
दिशा हीन होना कितना व्यर्थ लगता है
तब जब यू ही बिन मतलब न जाने किस तलाश में
मन भटकता होता है
यू ही सड़कों पर चलना.....
अनु
आज कहीं पदा
Monday, January 5, 2009
रिश्ते
हमारी ज़िन्दगी रिश्तों पर ही क्यों निर्भर रहती है
जब की
मैंने हमेशा ही रिश्तों को
टूटते , बिखरते , रोते , सिसकते ही पाया ।
दिल हमेशा इन के दर्द से दुखी पाया
दिल को हमेशा इन के हाथों ही टूटते पाया
हमारे अपने रिश्तों को अपनों की
बाहों में ही दम तोड़ते पाया ।
प्यार की छाओ में पलते हैं जो
न जाने किस धुप में उन्हें झुलसते पाया
कुछ को शक की तो कुछ नफरत की भेट चदते पाया
कुछ को नज़्दिकियिओं की तो कुछ को दूरियों की
भेट चदते पाया ।
शायद हर रिश्ता अपना वक्त लिखा कर आता है
इतिहास में देखा तो बस इतना ही समझ आया।
फ़िर भी मैंने
रिश्तों को......
अनु
जब की
मैंने हमेशा ही रिश्तों को
टूटते , बिखरते , रोते , सिसकते ही पाया ।
दिल हमेशा इन के दर्द से दुखी पाया
दिल को हमेशा इन के हाथों ही टूटते पाया
हमारे अपने रिश्तों को अपनों की
बाहों में ही दम तोड़ते पाया ।
प्यार की छाओ में पलते हैं जो
न जाने किस धुप में उन्हें झुलसते पाया
कुछ को शक की तो कुछ नफरत की भेट चदते पाया
कुछ को नज़्दिकियिओं की तो कुछ को दूरियों की
भेट चदते पाया ।
शायद हर रिश्ता अपना वक्त लिखा कर आता है
इतिहास में देखा तो बस इतना ही समझ आया।
फ़िर भी मैंने
रिश्तों को......
अनु
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