Wednesday, December 9, 2009

जब से तुम गए

जब से तुम गए हो
घर का मुख्य द्वार
अकेला, उदास खडा कर रहा है तुम्हारा इन्तजार
घर की सीडियां
तुम्हारे कदमो को चूमने के लिए है बेकरार
घर का वो कमरा
जो तुम्हें है सब से प्यारा वो भी
सूनेपन से हो गया है बेज़ार
कमरे की दीवारें
तुम्हारे नही होने का जीकर करती है बार बार
यह दीवारें, यह कमरा, यह घर
सब है बेजान लेकिन
जानती हूँ मैं इनको भी है तुमसे प्यार
तभी तो
तुम्हारे जाते ही हो जाते हैं उदास , बेहाल, वीरान
और करते हैं इन्तजार तुम्हारा
तुम्हारे जाने से तुम्हारे लौट आने तक!
जब से तुम गए हो..........
अनु।

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