क्या सोचूँ
क्या सोचूँ
क्या कहूँ
क्या लिखूँ
ए ज़िंदगी
तुझे कैसे संभोदित करूँ?
सफ़र कहूँ
जिस की दूर हैं मंज़िलें
लम्बे हैं रास्ते
या
पहेली कहूँ
जिसे सुलझाना है दूसरों के वास्ते
या
खेल कहूँ
जिस के अपने नियम है और
अपने है क़ायदे
या
प्रेम कहूँ
जो अधूरा है
जो जीने के बदलदे मायने
या
तोहफ़ा कहूँ
जो ख़ास होने का एहसास दे
या
संघर्ष कहूँ
जिस का कोई अंत नहीं
ए ज़िंदगी……..
अनु
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