हम अतरंगी दोस्त
विद्वान भी हैं और नादान भी
हम साथ भी हैं और दूर भी
इक दूसरे के लिए हैं मूल्यवान भी।
हक़ीक़त भी हैं और ख़्याल भी
बंधन भी है लेकिन प्रेम का।
आज़ादी भी है
हँसने की, रोने की, गाने की, कुछ भी करने की।
अपनी बेवक़ूफ़ियाँ भी बड़ी शान से लेते हैं हम
और प्रवचन भी तो खूब देते हैं हम।
एक दूसरे पर गर्व भी करते हैं।
ऊँचाइयों के पार जाने के सपने भी साथ साथ देखते हैं
हम
थोड़ा ज़्यादा ही attitude रखते हैं।
आख़िर क्यू ना रखें? बहुत मेहनत से कमाया है जनाब।
ज़िंदगी को ढोना नहीं जीना जानते हैं
हम हर हाल में मुस्कुराना जानते हैं।
कुछ तो बात है हम में
पूर्णिमा के चाँद भी हैं और अमावस्या की रात भी।
चाँद की चाँदनी से शीतल भी हैं
और सूर्य की रोशन से तेजस्वी भी हैं
हम अतरंगी दोस्त।
अनु जुल्का
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