उड़ो तुम जरा बस उड़ने की कोशिश तो करो
पंख तुम्हरे मैं काटूँगा
क्यों कि हक है है मुझे
हसो तो सही तुम
मैं तुम्हें खून के आंसू रुलानुगा
क्यो कि हक है मुझे
तुम नदी सी बहने कि कोशिश तो करो
बाँध तुम पर मैं बनाऊंगा
क्यो कि हक है मुझे
जरा सी भी चंचला करो
तुम पर चपला बन कर मैं बरसूँगा
क्यो कि हक है मुझे
मैंने पुछा किस ने दिया यह हक तुम्हें
तो जवाब ख़ुद से ही मिल गया
कि मेरे कई रूप हैं
पिता हूँ भाई हूँ पति हूँ दोस्त हूँ बेटा हूँ
और तुम
तुम तो अबला हो नारी हो
इस लिए यह हक है मुझे....
अनु
4 comments:
shandaar bahut khub achaa likha hai
gambheer rachana, stree apne aap ko jab tak ablaa samjhegi tab tak yahi hoga.
----------------"VISHAL"
bahut sundar ji,
kavita bahut achi , stree-purush ke bhaavo ko aapne bahut sundar shabd diye hai
bahut badhai .
pls visit my blog : poemsofvijay.blogspot.com
vijay
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