तुम आसमान
हो
और
मैं तुम्हें पाने की
इच्छा रखती हूँ ।
मैं तुम्हें भी पाना चाहती हूँ
और अपने पाँव के नीचे की
धरती भी नही छोड़ना चाहती हूँ ।
तुम अपनी ऊंचाई से मजबूर
और मैं अपनी लाचारी से लाचार
तुम्हें मन की आंखों से निहारा करती हूँ
ज़िन्दगी से रोज़ न जाने कितने
समझौते करती हूँ
ख़ुद को किसी तरह जिंदा रखने की
नाकाम कोशिश करती हूँ
जिंदा रहना एक मजबूरी है
और ज़िन्दगी जीना एक सुखद
एहसास
हैं
मैं तो
बस मजबूरी से गुजरती हूँ ।
तुम आसमान हो
और
मैं तुम्हें......
अनु
6 comments:
वाह जी बहुत ही आनन्ददायी प्रस्तुति के लिए आपको बधाई बहुत ही अच्छा लिखा है आपने
भावुक कर देने वाली
बहुत सुन्दर रचना है।बधाई।
अनु जी,
बहुत ही अच्छी बन पड़ी हैं यह पंक्तियाँ विशेषतः
"मैं तुम्हें भी पाना चाहती हूँ
और अपने पाँव के नीचे की
धरती भी नही छोड़ना चाहती हूँ"
मुकेश कुमार तिवारी
Anuji,
Apne Ichchha ....bahuthee sundar kavita likhi hai.Dar asal khud ko jinda rakhne kee nakam koshish ....jeevan par vijaya hai.Achchhee ...bhavpoorna kavita.Badhai.
Kabhee mere blog par aen ,Apka svagat hai.
Poonam
bahut hi sundar, gambheer, man ko chhu lene bali rachana. khas kar ye lines---
मैं तुम्हें भी पाना चाहती हूँ
और अपने पाँव के नीचे की
धरती भी नही छोड़ना चाहती हूँ
-------------------"VISHAL"
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