कुछ साल पहले
मैं और तुम
हाथ में डाले हाथ
सड़क पर गिनती गिनते गिनते
चलते थे
पहले सुबह में और फ़िर दोपहर में
बिना मतलब चला करते थे
और गिनती गिना करते थे
गिनती शुरू होती थी हमेशा दो से
मैं दो बोलती तुम तीन
मैं तीन बोलती तुम चार
ऐसा ही क्रम चलता रहता था
जब क्रम टूटता तो हम कहते एक वार और।
लकिन आज मैं उन्ही सड़कों पर अकेली चलती हूँ
खाली हाथ बस तुम्हरी यादों के साथ
मैं दो बोलती हूँ तो तीन की आवाज़ दिल से ही आ जाती है
तुम शायद तेज़ चलने की आदत से मजबूर हो
और मैं एक जगह ठहराव चाहती हूँ
इसी लिए मैं आज अकेली उन्ही सडकों पर अकेली चलती हूँ
इसी उम्मीद में की शायद तुम कहीं से आ जाओ
और गिनती क क्रम को आगे बढाओ.....
कुछ साल पहले.......
अनु.
8 comments:
इसी लिए मैं आज अकेली उन्ही सडकों पर अकेली चलती हूँ
इसी उम्मीद में की शायद तुम कहीं से आ जाओ
और गिनती के क्रम को आगे बढाओ.....
बहुत खूब.. बहुत सुन्दर रचना से आपने शुरुआत की। बधाई स्वीकार करें। हिन्दी चिट्ठाजगत में आपका हार्दिक स्वागत है।
॥दस्तक॥
गीतों की महफिल
तकनीकी दस्तक
ब्लोगिंग जगत में आपका स्वागत है. खूब लिखें, खूब पढ़ें, स्वच्छ समाज का रूप धरें, बुराई को मिटायें, अच्छाई जगत को सिखाएं...खूब लिखें-लिखायें...
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आप मेरे ब्लॉग पर सादर आमंत्रित हैं.
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अमित के. सागर
(उल्टा तीर)
और गिनती क क्रम को आगे बढाओ.....
शानदार शुरुआत है...अनु जी ...!
अनवरत रहें...
हम तो मजबूर हैं की हम तो चला करते हैं....
इसी इंतज़ार में की वो कभी आयेंगे....
जानते हुए की उनकी मंजिल बदल गई....
लगता है मानो, हम खड़े रह गए...
और हमारी और आने वाली राहें ही धूल धूसरित हो गई...
हर अंत, एक शुरुआत है.....
aapko padkar achha bhi laga or bura bhi....achha islye laga kyoki aap apne bhawo ko achhe se vyakt kar paate ho....lakin bura isliye shayad aap kahi na kahi nirash lagi.....
dost yehi to gindgi hai....
enjoy ur everymoment but mostly enjoy ur loveing happliy moment ...they are always with u...
now listen keep smiling ...
mere blog par aapka hamesha swagat hai.....
Jai ho Magalmay Ho
बहुत उम्दा प्रस्तुति
ब्लोगिंग जगत में आपका स्वागत है ।
भावों की अभिव्यक्ति मन को सुकुन पहुंचाती है
लिखते रहिए लिखने वाले की मंज़िल यही है }
कविता और गज़ल के लिए मेरे ब्लोग पर स्वागत है।
for art visit my daughters blog
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मैं एक जगह ठहराव चाहती हूँ
इसी लिए मैं आज अकेली उन्ही सडकों पर अकेली चलती हूँ
इसी उम्मीद में की शायद तुम कहीं से आ जाओ
और गिनती क क्रम को आगे बढाओ.....
Kafi prabhavit kiya aapki kavita ne. Kuch log hain jo nirantarta mein ek thahrao chahte hain magar kai logon ko iske liye samay hi nahin. swagat mere blogpar bhi.
aap sab ki main aabhaari hoon k aap ne mera likhaa pdaa hai. mujhe to koi umeed hi nahi thhi k koi era likha bhi padega. thank u for supporting me. i m new to blogger's world. so having sm technical problems. thanks.
anu
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