Friday, March 9, 2012

मैं तुम्हें याद करती हूँ

जब सुबह होती है 
मंदिर की घंटियों कि आवाज़ सुनाई देती है
मैं तुम्हें याद करती हूँ.
जब सूरज धीरे धीरे अन्धकार को मिटाता है 
मैं तुम्हें याद करती हूँ.
जब स्वर्ण सी धुप खिलती है 
मैं तुम्हें याद करती हूँ.
फिर दिन जब रंग बदलता है 
मैं तुम्हें याद करती हूँ.
जब बादल घुमर कर आते हैं और
अपने आंसू बरसाते हैं 
मैं तुम्हें याद करती हूँ.
जब हवाएं चलती हैं 
तुम क्यूँ नहीं हो साथ मेरे पूछती  हैं 
मैं तुम्हें याद करती हूँ.
उन हसीं लम्हों को 
तुम्हारी आवाज़ को
तुम्हारे साथ को
तुम्हारे सुन्दर चेहरे को
तुम्हारी बोलती आँखों को 
मैं याद करती हूँ.
तुम्हारा चलना 
आँखें बंद कर के जागना 
मुझे पास न पा कर रोना
मैं याद करती हूँ.
तुम्हारा घर से जाना और 
सदियों तक लौट कर न आना
मैं याद करती हूँ.
पूर्णिमा की रात 
जब हम थे साथ 
मैं याद करती हूँ.
हर पल ,हर लम्हा 
मैं तुम्हें याद करती हूँ.
अनु 

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