Wednesday, June 13, 2012

रिश्ता मजबूरी का

अगर फूल का खुशबू से नाता है  मजबूरी का
 तो  हाँ हाँ , तुम मेरी मजबूरी हो !
अगर सूरज का रौशनी से नाता है मजबूरी
का तो हाँ  हाँ , तुम मेरी मजबूरी हो !!
 अगर साँसों का शारीर से नाता है  मजबूरी का
 तो हाँ  हाँ, तुम मेरी मजबूरी हो !!!
 अगर चाँद का चाँदनी से नाता है  मजबूरी का
 तो  हाँ  हाँ , तुम मेरी मजबूरी हो !!!!
 अगर समंदर का गहराईओं से नाता है मजबूरी का
 तो हाँ हाँ, तुम मेरी मजबूरी हो !!!!!!
 अगर आसमान का  उचाइओन से नाता है  मजबूरी का
तो हाँ हाँ, तुम मेरी मजबूरी हो !!!!!!!
 अगर जीवन का मृत्यु से नाता है  मजबूरी का
 तो हाँ  हाँ , तुम मेरी मजबूरी हो !!!!!
 अनु 

Sunday, June 3, 2012

क्या होती बात !

तुम चलते मैं चलती
हम चलते
साथ चलते जज़्बात 
तो फिर क्या होती बात !
तुम रहते मेरे साथ
चाहे वो होती पूर्णिमा की रात 
या फिर  अमावस्या का अन्धकार
बस
तुम चलते मैं चलती
हम चलते 
साथ चलते जज़्बात 
तो फिर क्या होती बात !!
काश ऐसा होता
गाँव कि कोई गली होती 
या होता कोई शहर
या फिर होता गंगा का किनारा
चाहे होता कोई गुरुद्वारा 
या होता फिर ठाकुर जी का द्वारा
बस 
तुम चलते मैं चलती
हम चलते 
साथ चलते जज़्बात 
तो फिर क्या होती बात !!!
तुम तो हो मेरी मंजिल
काश तुम्हारी मंजिल का रास्ता भी 
मुझ तक  ही होता 
तो क्या होती बात ....
तो क्या होती बात..
तुम चलते मैं चलती 
हम चलते 
साथ चलते जज़्बात 
तो फिर क्या होई बात !!!!
अनु .